पहले गाँव मे न टेंट हाऊस थे और न कैटरिंग थी.. तो जानिए केसे होते थे शादी विवाह?

पहले गाँव मे न टेंट हाऊस थे और न कैटरिंग थी तो बस सामाजिकता। गांव में जब कोई शादी ब्याह होते तो घर घर से चारपाई आ जाती थी, हर घर से थाली, लोटा, गिलास, कराही इकट्ठा हो जाता था और गाँव की ही महिलाएं एकत्र हो कर खाना बना देती थीं।

 

औरते ही मिलकर दुल्हन को तैयार कर देती थीं और हर रस्म का गीत गारी वगैरह भी खुद ही गा लिया करती थी।

 

तब DJ जैसी चीज नही होती थी और न ही कोई आरकेस्ट्रा वाले फूहड़ गाने। गांव के सभी चौधरी टाइप के लोग पूरे दिन काम करने के लिए इकट्ठे रहते थे। हंसी ठिठोली चलती रहती और समारोह का कामकाज भी।

 

शादी ब्याह मे गांव के लोग बारातियों के खाने से पहले खाना नहीं खाते थे क्योंकि यह घरातियों की इज्ज़त का सवाल होता था। गांव की महिलाएं गीत गाती जाती और अपना काम करती रहती। सच कहु तो उस समय गांव मे सामाजिकता के साथ समरसता होती थी।

पहले गाँव मे न टेंट हाऊस थे और न कैटरिंग थी
पहले गाँव मे न टेंट हाऊस थे और न कैटरिंग थी

 

खाना परोसने के लिए गाँव के लौंडों का गैंग समय पर इज्जत सम्भाल लेते थे। कोई बड़े घर की शादी होती तो टेप बजा देते जिसमे एक कॉमन गाना बजता था-मैं सेहरा बांधके आऊंगा मेरा वादा है और दूल्हे राजा भी उस दिन खुद को किसी युवराज से कम न समझते।

 

दूल्हे के आसपास नाई हमेशा रहता, समय समय पर बाल झारते रहता था और समय समय पर काजल-पाउडर भी पोत देता था ताकि दुल्हा सुंदर लगे। फिर द्वारा चार होता फिर शुरू होती पण्डित जी फेरों की रस्म जिसमें आधी रात गुजर जाती है।

 

 

बारातीयों के ठहरने की व्यवस्था गांव वाले अपने घर में ही करते है।  

आपस में खुब मेल मिलाप और परिचय होता था बाराती जिस घर मे ठहरते थे उस घर मे विवाह लायक लड़का लड़की होता तो वही रिस्ता भी कर लेते थे सुबह लस्सी और हुक्का पिते पिते ।

 

 

दुल्हा जिस घर मे रुकता वहाँ स्पेशल इंतजाम होते दो तीन लौंडे 

रात के सोने के बिस्तर सजाते , सुबह गांव की बणी में जंगल करवाने के बाद नहाने धोने के स्पेशल इंतजाम, नया तोलिया, सिसा ,कंगा लिये पाटड़े के पास ही खड़े रहते थे।

 

 

दुल्हे का जिजा भी पुरे नखरे मे रहता था जैसे कोई बड़ी रिहासत का बादशाह है।  

सुबह दूल्हे का साक्षात्कार वधू पक्ष की महिलाओं से करवाया जाता और उस दौरान उसे विभिन्न उपहार प्राप्त होते जो नगद और श्रृंगार की वस्तुओं के रूप में होते.. इस प्रकिया में कुछ अनुभवी महिलाओं द्वारा काजल और पाउडर लगे दूल्हे का कौशल परिक्षण भी किया जाता और उसकी समीक्षा परिचर्चा विवाह बाद अलग से होती थी और लड़कियां दूल्हा के जूता चुराती और 21 से 51 में मान जाती। इसे दूल्हा दिखाई कहा जाता था ।

 

विदाई के समय गांव के बुजर्ग और बाराती मिलकर नेक चार (मिलणी ) करते थे और पंडित और नाई को दान दक्षिणा देकर खुश करते थे।

 

पुछते भी थे पंडित जी जमा राजी होगा अगर 20-50 कम ज्यादा होता तो उस मामले को सलटा कर दोनु को खुश करते थे ।

 

Also Read: इलेक्टोरल बॉन्ड कितना बड़ा घोटाला.. जानिये

 

कलेवा (नाश्ता) करके विदाई होती थी 

आज की पीढ़ी उस वास्तविक आनंद से वंचित हो चुकी है जो आनंद विवाह का हम लोगों ने प्राप्त किया है.

लोग बदलते जा रहे हैं, परंपरा भी बदलते चली जा रही है, आगे चलकर यह सब देखन को मिलेगा की नही अब तो विधाता जाने लेकिन जो मजा उस समय मे था, वह अब धीरे धीरे बिलुप्त हो रहा है।

 

बने रहे आप हमारी वेबसाइट Esmachar के साथ. आपको हरियाणा ही नहीं बल्कि सभी महत्वपूर्ण सूचनाओं से हम रूबरू कराने के लिए सबसे पहले तयार है. चाहे खबर कोई भी हो. सरकारी योजनाए, क्राइम, Breaking news, viral news, खेतीबाड़ी, स्वास्थ्य.. सभी जानकारियों से जुड़े रहने के लिए हमारे whatsapp ग्रुप को जॉइन जरूर करें.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button