इलेक्टोरल बॉन्ड्स के नाम पर ‘हफ्ता वसूली कर रहीं सरकार’?

इलेक्टोरल बॉन्ड्स के नाम पर ‘हफ्ता वसूली सरकार’ ने दुनिया का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार किया है।

कंपनियों से एक्सटोर्शन का यह मॉडल खुद नरेंद्र मोदी का तैयार किया हुआ था।

 

इस ‘आपराधिक खेल’ के नियम स्पष्ट थे:

– एक तरफ कॉन्ट्रैक्ट दिया, दूसरी तरफ से कट लिया,

– एक तरफ से रेड की, दूसरी तरफ चंदा लिया,

 

ED, IT, CBI जैसी जांच एजेंसियां नरेंद्र मोदी की ‘वसूली एजेंट’ बन कर काम कर रही हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड्स
इलेक्टोरल बॉन्ड्स

जो कभी देश के संस्थान हुआ करते थे वो अब भाजपा के हथियार के रूप में काम कर रहे हैं।

 

भारतीय मीडिया इस स्थिति में नहीं है कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड की सच्चाई जनता को बता सके, इसलिए आपको खुद ही भाजपा का असली चेहरा पहचानना होगा।

 

सरकारी तंत्र को पूरी तरह संगठित भ्रष्टाचार में झोंक देने वाले नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं।

 

 

एसबीआई की ओर से कुल 22,217 इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए। हर बॉन्ड के पीछे एक घोटाला है। कुछ नजीर देखिए-

 

केस नंबर 1

2 अप्रैल 2022 : फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज की 409 करोड़ की संपत्ति ED ने अटैच की।

7 अप्रैल 2022 : कंपनी ने 100 करोड़ का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदकर चंदा दिया। किसको दिया होगा? रेड फिर क्यों नहीं पड़ी?

 

केस नंबर 2

अप्रैल 2023 : मेघा इंजीनियरिंग ने करोड़ों का चंदा दिया।

मई 2023 : मेघा इंजीनियरिंग को 14,400 करोड़ का प्रोजेक्ट मिल गया।

इन्हें चंदा मिला, उन्हें धंधा मिला।

 

केस नंबर 3

18 अगस्त 2022 : सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मालिक पूनावाला ने एक ही दिन में 52 करोड़ का चंदा दिया।

22 अगस्त 2022 : मोदी ने उनसे मुलाकात की। फिर क्या तमाशा हुआ, देश जानता है। कोविड वैक्सीन पर सीरम इंस्टीट्यूट को मोनोपोली बख्शी गई।

 

केस नंबर 4

खनन समूह वेदांता ने 400 करोड़ रुपये से ज्यादा के इलेक्टोरल बॉन्ड दान किए।

फिर सरकारी कंपनी BPCL वेदांता को सौंप दी गई।

सरगना को मिला चंदा, पंटर को मिला धंधा

 

केस नंबर 5

नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी ने 90 करोड़ के बॉन्ड खरीदे।

यही कंपनी उत्तराखंड में सुरंग बना रही थी। 41 मजदूर 17 दिनों के लिए फंस गए।

मामले की जांच तक नहीं हुई।

 

केस नंबर 6

गाजियाबाद स्थित यशोदा हॉस्पिटल पर कोविड के दौरान जनता से वसूली के आरोप लगे। यशोदा पर छापा पड़ा।

यशोदा हॉस्पिटल ने 162 करोड़ बॉन्ड खरीदे और दान करके वॉशिंग मशीन में धुल गया।

 

केस नंबर 7

टोरेंट पॉवर नाम की कंपनी ने 86.5 करोड़ का चंदा दिया।

कंपनी को गुजरात में 47000 करोड़ का सरकारी प्रोजेक्ट मिल गया।

ठेके कौन देता है? फिर चंदा किसको मिला?

चंदा दो, धंधा लो।

 

केस नंबर 8

IRB Infrastructure नाम की कंपनी ने जुलाई 2023 में करोड़ों का चंदा दिया।

कंपनी को अगले कुछ महीनों में लगभग 6000 करोड़ का प्रोजेक्ट मिला।

 

केस नंबर 9

भाजपा सरकार ने मित्तल ग्रुप को गुजरात में सबसे बड़ा धंधा दिया।

मित्तल ग्रुप ने इलेक्टोरल बॉन्ड से भाजपा को चांप कर चंदा दिया।

 

केस नंबर 10

पुलवामा हमले के बाद Hub Power Company नाम की पाकिस्तानी कंपनी ने भारत में इलेक्टोरल बॉन्ड क्यों खरीदा और किसे चंदा दिया, इसकी जांच नहीं होगी। जैसे पुलवामा हमले की जांच कभी नहीं हुई।

 

केस नंबर 11

दिसंबर, 2023 : शिरडी साई इलेक्ट्रिकल लिमिटेड पर छापा पड़ा।

जनवरी 2023 : शिरडी साई ने छप्पर फाड़कर चंदा दिया।

 

 

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?

इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा देने वाली एक व्यवस्था है. 2017 में इसका ऐलान हुआ और अगले बरस ये लागू कर कर दी गई. इसके तहत प्रावधान किया गया कि डोनर (दान देने वाला) भारतीय स्टेट बैंक से बांड खरीद कर अपनी पसंद की पार्टी को दे सकता है और फिर वह पार्टी उसको 15 दिनों के भीतर एसबीआई में भुना सकती है।

 

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चुनावी बॉन्ड योजना के मार्फत डोनर कोई शख्स, कंपनी, फर्म या एक समूह का हो सकता है और वह 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के बॉन्ड को खरीद कर उसे चंदे के तौर पर राजनीतिक दलों को दे सकता है. इस पूरी प्रक्रिया में दान देने वाले की पहचान गोपनीय रखने की बात थी जो कइयों को नागवार गुजरी।

 

 

एक और दिलचस्प शर्त इस योजना में नत्थी कर दी गई कि जिस भी पार्टी ने लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक फीसदी हासिल किया हो, वही इस स्कीम के जरिये चंदा हासिल कर सकता है यानी साफ था नई-नवेली पार्टियों को इसके जरिये चंदा नहीं मिल सकता था. सार तत्त्व ये कि पहले चुनाव में कुछ कमाल करिये फिर चंदा पाइये।

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