रणजीत चौटाला का विधायकी‌ से त्यागपत्र स्वीकार होना 30 अप्रैल तक लटका

रणजीत चौटाला:गैर- विधायक कैबिनेट मंत्री बने रहने बावजूद रणजीत न केवल राज्य सरकार से वेतन- भत्तों के हकदार बल्कि साथ साथ पूर्व विधायक के तौर पर विधानसभा सचिवालय से पेंशन प्राप्त करने के भी योग्य

आज तक ऐसा नहीं हुआ जब एक मंत्री विधायकी छोड़कर बना रहा हो प्रदेश में मंत्री हालांकि मंत्रिपद छोड़कर विधायक बने रहना सामान्य

चंडीगढ़ – पूरे एक माह का लंबा अंतराल बीते जाने के बाद भी सिरसा ज़िले की रानिया विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक रणजीत चौटाला, जो गत माह 24 मार्च की शाम भाजपा में शामिल हो गए थे जिसके साथ ही पार्टी द्वारा उन्हें हिसार लोकसभा सीट से उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया था, का विधायक पद से त्यागपत्र स्वीकार नहीं हो पाया‌ है.

विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) ज्ञान चंद गुप्ता ने हालांकि मंगलवार 23 अप्रैल को‌ रणजीत को उनके समक्ष व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होकर गत माह रणजीत द्वारा एक मैसेंजर के हाथों स्पीकर को‌ भेजे गए‌ तथाकथित त्यागपत्र का‌ सत्यापन करने के लिए बुलाया था परंतु वह नहीं आए जिसके बाद स्पीकर द्वारा मामले की अगली तारीख 30 अप्रैल तय की गई है

गत माह 12 मार्च को नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में गठित नई भाजपा सरकार में रणजीत को कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया‌ था एवं 22 मार्च को उन्हें ऊर्जा (बिजली) विभाग और जेल विभाग आबंटित किये गए. रणजीत चौटाला ने विधायक पद के साथ हालांकि कैबिनेट मंत्रीपद से इस्तीफ़ा नहीं दिया है.

इसी बीच‌ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और कानूनी विश्लेषक हेमंत कुमार ने बताया कि बेशक विधानसभा स्पीकर द्वारा रणजीत चौटाला का विधानसभा सदस्यता से त्यागपत्र स्वीकार करने में एक महीने से लंबा समय लग रहा है परन्तु अगर उन्हें रणजीत को दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत सदन की अयोग्यता से बचाना है,

तो स्पीकर को उनका विधायक पद त्यागपत्र गत 24 मार्च की पिछली तिथि से ही स्वीकार करना होगा अर्थात वह उसी पिछली तारीख से ही प्रभावी होना चाहिए.

हेमंत ने बताया कि इस सबके बीच एक रोचक परंतु महत्वपूर्ण विषय यह उठता है कि गत माह‌ 24 मार्च से विधायक के तौर पर त्यागपत्र स्वीकार होने के फलस्वरूप रणजीत पूर्व विधायक बन जाएंगे एवं इस कारण वह हरियाणा विधानसभा सदस्य (वेतन, भत्ते एवं पेंशन) कानून, 1975 के अंतर्गत‌ विधानसभा सचिवालय से पेंशन‌ प्राप्त करने के योग्य‌ हो जाएंगे.

चूंकि रणजीत वर्ष 1987-90 तक भी हरियाणा की तत्कालीन विधानसभा‌ के सदस्य रहे हैं एवं इस प्रकार उनकी दो कार्यकालों‌ की पेंशन‌ बनती है.

वहीं क्योंकि रणजीत 6 सप्ताह पुरानी नायब सैनी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं, इसलिए हरियाणा मंत्रीगण वेतन एवं भत्ते कानून, 1970 के प्रावधानों के अंतर्गत‌ वह प्रदेश सरकार सरकार से गैर-विधायक होते‌ हुए‌ भी मंत्री के तौर पर वेतन और अन्य भत्ते (निर्वाचन क्षेत्र भत्ते और टेलीफोन भत्ते को छोड़कर प्राप्त करने के हकदार‌ हैं जैसे वर्तमान में मुख्यमंत्री नायब सैनी को प्राप्त हो रहे हैं.

हेमंत ने बताया कि हरियाणा विधानसभा वेतन- पेंशन कानून,1974 अनुसार पूर्व विधायक तभी पेंशन प्राप्त करने का हकदार नहीं‌ होगा अगर वह भारत का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या किसी प्रदेश का राज्यपाल या प्रशासक बन जाए अथवा संसद के किसी सदन का या पुनः विधानसभा का सदस्य निर्वाचित हो‌‌‌ जाए‌.

इसके अतिरिक्त केंद्र या प्रदेश सरकार के अधीन नौकरी कर वेतन प्राप्त करने वाले पूर्व‌ विधायक की भी पेंशन‌ बंद हो जाती है. अब चूंकि प्रदेश सरकार में मंत्रीपद को प्रदेश सरकार के अधीन नौकरी नहीं कहा जा सकता, इसलिए पूर्व विधायक की पेंशन प्राप्त करने के लिए एक गैर- विधायक मंत्री भी योग्य बनता है

बहरहाल क्या निर्दलीय विधायक पद से त्यागपत्र स्वीकार होने के बाद रणजीत मौजूदा नायब सैनी सरकार में‌ बेरोकटोक कैबिनेट मंत्री बने रह सकते हैं या फिर उस पद से भी उन्हें त्यागपत्र देना पड़ेगा,

हेमंत ने बताया कि चूँकि बीती 12 मार्च को मंत्रीपद की शपथ लेते समय रणजीत विधायक थे, इसलिए उस आधार पर तो उनका मंत्रिमंडल से भी त्यागपत्र देना बनता है जो मुख्यमंत्री के मार्फत प्रदेश के राज्यपाल को सौंपा जा सकता है.

हालांकि हेमंत ने यह भी बताया कि विधायक न होते हुए भी कोई व्यक्ति प्रदेश का मुख्यमंत्री या मंत्री नियुक्त हो सकता है बशर्ते उस नियुक्ति के 6 महीने के भीतर वह व्यक्ति विधानसभा का सदस्य अर्थात विधायक बन जाए जैसे वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सैनी भी मौजूदा विधानसभा के सदस्य नहीं है परन्तु‌ चूंकि नायब सैनी वर्तमान में 17 वीं‌ लोकसभा के कुरूक्षेत्र से सांसद भी हैं, इसलिए उन्हें पूर्व विधायक के तौर पर पेंशन नहीं मिलेगी

हेमंत का कहना है कि मौजूदा विधानसभा का सदस्य न होना‌ अर्थात गैर-विधायक होना और वर्तमान विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर पूर्व विधायक होना दोनों में अंतर होता है.

 

मुख्यमंत्री नायब‌ सैनी 14 वीं‌ हरियाणा विधानसभा के आज तक सदस्य ही नहीं है जबकि रणजीत सिंह मौजूदा विधानसभा की सदस्यता‌ से इस्तीफा देकर पूर्व विधायक बने हैं. आज तक पहले ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जब प्रदेश का मंत्री‌ विधायक पद से त्यागपत्र देकर मंत्री बना रहा हो हालांकि मंत्रिपद छोड़कर विधायक बना रहना‌ सामान्य बात है.

 

गैर-विधायक रहते हुए रणजीत चौटाला के अधिकतम 6 महीने तक तक मंत्री बने रहने की अवधि उनके विधायक पद से दिए गये त्यागपत्र के स्वीकार होने की तारिख से ही आरम्भ होगी‌.

 

हालांकि इसके लिए उन्हें पुनः कैबिनेट मंत्री के तौर राज्यपाल द्वारा शपथ दिलाए‌ जाने की भी बात उठती है क्योंकि‌‌ गैर-विधायक के तौर पर अधिकतम 6 माह मंत्री कार्यकाल उनका ताजा बनता है.

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button