Breaking news, सरकारी सेवा में नियुक्त वकीलों के पदनाम में अटॉर्नी-न्यायवादी शब्द विरूद्ध भेजा नोटिस

वर्ष 1976 में भारतीय संसद ने एडवोकेट्स कानून में संशोधन द्वारा हटा दिया था शब्द

Breaking news, बावजूद इसके हरियाणा, पंजाब और यूटी चंडीगढ़ के सरकारी वकीलों के सेवा नियमों में हो रहा प्रयोग

चंडीगढ़ — हरियाणा, पंजाब और यू.टी. चंडीगढ़ की नियमित सरकारी सेवा में नियुक्त अधिवक्ताओं (वकीलों) अर्थात

डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी (डी.ए.), डिप्टी डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी (डी.डी.ए.) और असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी (ए.डी.ए.) के पदनाम में प्रयुक्त होने वाले अटॉर्नी अर्थात न्यायवादी के प्रयोग पर कानूनी आपत्ति जताते हुए उक्त दोनों राज्य सरकारों एवं यू.टी. चंडीगढ़ प्रशासन को हाल ही में एक नोटिस भेजा गया है.

 

इस संबंध में नोटिस भेजने वाले पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि देश की संसद द्वारा बनाये गये एडवोकेट्स एक्ट अर्थात अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में वर्ष 1976 में संसद द्वारा कानूनी संशोधन कर अटॉर्नी शब्द को उक्त कानून में से हटा दिया गया था एवं तब से आज तक मौजूदा तौर पर केवल दो प्रकार के वकीलों को ही हमारे देश में कानूनी मान्यता प्राप्त है- एक (सामान्य) एडवोकेट और दूसरे सीनियर एडवोकेट्स. सीनियर एडवोकेट वह होता है जिन्हे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा पदांकित किया जाता है.

 

बहरहाल, नियमित सरकारी सेवा में नियुक्त तीनों श्रेणियों के सरकारी वकीलों अर्थात जिला न्यायवादी (डी.ए.), उप जिला न्यायवादी (डी.डी.ए.) एवं सहायक जिला न्यायवादी (ए.डी.ए.) का चयन सम्बंधित राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा किया जाता हैै.

जबकि प्रदेश के गृह एवं न्याय विभाग द्वारा उनकी सेवा में नियुक्ति और विभिन्न सरकारी विभागों /कार्यालयों और सरकारी बोर्ड-‌ निगमों आदि में और प्रदेश की जिला एवं अधीनस्थ अदालतों (न्यायालयों ) में उनकी तैनाती और तबादले किये जाते हैं. नियमित सरकारी वकील प्रदेश के अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) निदेशालय के अंतर्गत आते हैं.

 

हेमंत का स्पष्ट कानूनी मत है कि हरियाणा, पंजाब एवं यू.टी. चंडीगढ़ की नियमित सरकारी सेवा में नियुक्त वकीलों के पदनाम में अटॉर्नी अर्थात न्यायवादी शब्द किसी भी प्रकार से न्यायोचित नहीं है.

जब इन सरकारी वकीलों की नियुक्ति होती है तो राज्य सरकार के गृह एवं न्याय विभाग द्वारा दो अलग अलग नोटिफिकेशन जारी कर अर्थात सिविल प्रक्रिया संहिता (सी.पी.सी. ), 1908 की धारा 2(7) में उन्हें गवर्नमेंट प्लीडर (जी.पी.) एवं दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी. ) की धारा 24 में लोक अभियोजक (पब्लिक प्रासीक्यूटर -पी.पी. ) के तौर पर पदांकित किया जाता है एवं सभी सिविल/क्रिमिनल अदालतों में यह उक्त पदनामों से ही कार्य करते हैं और हस्ताक्षर भी करते है अर्थात न्यायालयों में भी अटॉर्नी शब्द का प्रयोग नहीं होता.

प्रदेश की सिविल कोर्ट्स मे सरकारी वकील को जी.पी. जबकि क्रिमिनल कोर्ट्स में पी.पी. के तौर पर कार्य करते हैं.

 

इसके अतिरिक्त जब नियमित सरकारी में नियुक्त वकीलों को विभिन्न राजकीय विभागों और बोर्ड-निगमों में तैनात कर विभिन्न विषयों पर कानूनी राय आदि देने के कार्यो के लिए तैनात किया जाता है, तब भी इनके पदनाम में अटॉर्नी शब्द के प्रयोग का कोई वैध औचित्य नहीं बनता एवं उस ड्यूटी में लॉ ऑफिसर (विधि अधिकारी ) का पदनाम सर्वथा उपयुक्त है जैसा कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों/विभागों और कार्यालयों में किया जाता है. केंद्र सरकार की सेवा में किसी सरकारी वकील के लिए अटॉर्नी शब्द का प्रयोग नहीं होता.

 

भारत के संविधान के अनुच्छेद 76 में हालांकि अटॉर्नी जनरल फॉर इंडिया अर्थात भारत के महान्यायवादी का उल्लेख अवश्य है जो देश का प्रथम/सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है जिस पद पर ऐसे उच्च कोटि के कानूनविद को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त जाता है जो सुप्रीम कोर्ट का जज बनने की योग्यता रखता हो. परन्तु वह अपने स्तर का एक ही संवैधानिक पद है एवं देश के किसी भी राज्य या जिले में एडीशनल, डिप्टी या असिस्टेंट अटॉर्नी जनरल या अटॉर्नी के लिए कानूनी प्रावधान नहीं है.

 

हालांकि हरियाणा, पंजाब एवं यूटी प्रशासन द्वारा अपने नियमित सरकारी वकीलों के लिए बनाये गये सेवा-नियमों में अटॉर्नी शब्द का प्रयोग किया गया है जो एडवोकेटस कानून, 1961 के विरूद्ध है.

 

गौरतलब है कि हाई कोर्ट में स्थित हरियाणा और पंजाब के एडवोकेट जनरल (एजी- महाधिवक्ता) कार्यालय में अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट ) आधार पर विभिन्न श्रेणी के सरकारी वकील रखे जाते हैं जिन्हे (सीनियर ) एडिशनल एडवोकेट जनरल, (सीनियर) डिप्टी एडवोकेट जनरल, असिस्टेंट एडवोकेट जनरल का पदनाम दिया जाता है अर्थात इन सरकारी वकीलों के पदनाम में अटॉर्नी शब्द का प्रयोग नहीं होता है.

 

इसी प्रकार यू.टी. चंडीगढ़ प्रशासन की हाई कोर्ट में पैरवी करने वाले सरकारी वकीलों को भी अटॉर्नी की बजाये सीनियर स्टैंडिंग काउंसल और स्टैंडिंग काउंसल कहा जाता है.

हेमंत ने यह भी बताया कि गत वर्ष दिसंबर,2023 में संसद द्वारा मौजूदा सी.आर.पी.सी., 1973 को समाप्त कर बनायीं गयी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो आगामी 1 जुलाई 2024 से पूरे देश में लागू होगी, की धारा 18 और 19 में भी पब्लिक प्रासीक्यूटर (पी.पी.) का उल्लेख किया गया है अर्थात उसमें भी अटॉर्नी (न्यायवादी) शब्द का उल्लेख नहीं है.

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