Anti Incumbency: पीएम मोदी के खिलाफ एंटी इन्कंबैंसी दिखने लगी
Anti Incumbency (ऐंटी इनकंबेंसी) के दावों का जवाब तैयार कर रहे नरेंद्र मोदी
Anti Incumbency: अंतिम परिणाम जानने के लिए हमें चार जून तक इंतजार करना होगा। फिलहाल यह जरूर कहा जा सकता है कि एक जैसी ही सियासत से जनता में एक थकान उभरी है।
साथ ही Anti Incumbency का फैक्टर कहीं ना कहीं फिर से काम करने लगा है। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण वाली सीटों पर पिछले दो आम चुनावों की तुलना में कम वोट पड़े। इस तरह कम मतदान का एक ट्रेंड उभरता नजर आ रहा है।
पहले और दूसरे चरण को मिला कर लोकसभा की 543 में से 190 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है। वहां से अब तक जो संकेत उपलब्ध मिले हैं, उनके आधार पर हम एक मोटा अनुमान लगाने की स्थिति में हैं।
पिछली दो बार जब अधिक वोट गिरे, तब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को बंपर जीत हासिल हुई थी। दोनों बार मतदाताओं के एक बड़े हिस्से में उनके नेतृत्व लेकर उम्मीद और जोश दिखा था। क्या अब सामने आ रहे रुझान से उस माहौल में किसी बारीक बदलाव का अंदाजा लगाया जा सकता है?
Anti Incumbency: दो और बातें हैं
जिनसे ऐसे अनुमान को बल मिला है। पहला, यह कि प्रधानमंत्री और अन्य सत्ताधारी नेताओं की जुबान से “विकसित भारत” का नैरेटिव गायब हो गया है। दूसरा, यह कि अब वे “अबकी बार 400 पार” के दावे नहीं कर रहे हैं।
पिछले दो आम चुनावों में मोदी के दिए “अच्छे दिन” जैसे नारों ने मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को उत्साहित किए रखा था। मगर अब ऐसा लगता है कि महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं की मार ने जमीनी स्तर पर बड़बोले दावों के प्रति लोगों में विपरीत प्रतिक्रिया पैदा की है।
इसके बावजूद अभी इस नतीजे पर पहुंच जाना जल्दबाजी होगी कि मोदी राज अपने आखिरी दिनों में है। यह भी मुमकिन है कि भाजपा का हिंदुत्व का एजेंडा एक स्थायी नियामक बन चुका हो, जो लोगों बिना उत्साह के भी मतदाताओं को भाजपा को वोट देने के लिए प्रेरित करे।
फिर संगठन शक्ति, धन-बल, और संस्थाओं के साथ के कारण भाजपा को मुकाबले में पहले से बढ़त मिली हुई है। इसलिए अंतिम परिणाम जानने के लिए हमें चार जून तक इंतजार करना होगा।
लेकिन फिलहाल यह जरूर कहा जा सकता है कि एक जैसी ही सियासत और उससे जुड़े चेहरों को लेकर जनता में एक थकान उभरी है। साथ ही एंटी इन्कंबैंसी का फैक्टर कहीं ना कहीं फिर से काम करने लगा है।
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