अभय चौटाला v/s गौरी बाबू: गौरी बाबू की भूमिका में है अभय चौटाला

अभय चौटाला v/s गौरी बाबू: ओटीटी प्लेटफार्म सबसे ज्यादा चर्चित वेबसरीज महारानी 3

 

 

अभय चौटाला v/s गौरी बाबू: “हम किसी का बना तो नही सकते है पर बिगाड़ बहुत कुछ सकते है ” की नीति खत्म करेगी सियासी जीवन

 

अभय चौटाला v/s गौरी बाबू: जी हां साथियों आजकल ओटीटी प्लेटफार्म सबसे ज्यादा चर्चित वेबसरीज महारानी 3 में बिहार की राजनीति की उठा पटक को फिल्माया गया है।

 

अभय चौटाला v/s गौरी बाबू

 

उसमे काफ़ी रोल और डायलॉग ऐसे है जो हरियाणा की वर्तमान स्थिति में भी फिट बैठते नज़र आ रहे है। उसमे सबसे सटीक रोल गौरी बाबू का है जो हरियाणा के वर्तमान परिदृश्य में फिट बैठ रहा है।

 

अभय चौटाला v/s गौरी बाबू

महारानी 3 में गौरी बाबू कभी अच्छे बड़े नेता और पार्टी में ऊंचे कद और जनता में जनप्रिय नेता होते थे । जिनकी वजह से उनकी स्वाभिमान या कहें की अहंकार काफी ऊंचा हो चुका था ।

 

लेकिन समय के साथ उनकी पार्टी और उनका कद छोटा होता गया और आज वो काफी दयनीय स्थिति में मुख्यमंत्री की दया याचना और विपक्ष द्वारा उनके भूतपूर्व कद को देखते हुए नैतिकता के आधार पर सम्मान देने की वजह से सियासी जीवन में जीवित है।

 

अभय चौटाला v/s गौरी बाबू: अहंकार ने उन्हें अंदर से खोखला कर दिया? 

पर उनके अहंकार ने उन्हें अंदर से खोखला कर दिया जिसकी वजह से वो ऐसे निम्न स्तर के निर्णय ले लेते है और उनका एक डायलॉग अच्छा चर्चित है की हम किसी का बना तो नही सकते है पर बिगाड़ बहुत कुछ सकते है ” वो बनाने की बजाय औरों का बिगाड़ने पर चल पड़ते है ,जिससे उनके सियासी जीवन पर पूर्ण विराम लग जाता है।

 

इस अब इस कहानी का हरियाणा के परिदृश्य में सीधा संबंध अभय सिंह चौटाला (अभय चौटाला v/s गौरी बाबू) से जुड़ता नज़र आ रहा है । आज कल हरियाणा में भी काफी सियासी उठा पटक जारी है। जिसमे मुख्य किरदार तो दो ही है भाजपा और कांग्रेस।

 

बाकि अभय चौटाला, दुष्यंत चौटाला दोनो इस स्थिति में है की वो अपना कुछ बना तो नही सकते है पर किसी का बिगाड़ सकते है अर्थात आम भाषा में कहें तो वोट काटु हो सकते है। और वो इसपर काम भी पूरा कर रहें हैं।

 

पर जनता की माने तो उनको वोट तो सत्तासीन पार्टी के काटने का प्रयास करना चाहिए जिसने हरियाणा को बदत्तर हालात पर लाकर खड़ा कर दिया , किसानों , नौजवानों के साथ अत्याचार किया।

 

चाचा भतीजा खेल भाजपा की तरफ से? 

पर ये चाचा भतीजा खेल भाजपा की तरफ से रहें हैं। दुष्यंत का तो लोगों में फिर भी स्पष्ट है कि वो भाजपा ने लड़ने को भेजा है । पर अभय सिंह चौटाला मुखोटे में छिपा वो किरदार है जो अपना कुछ बनाने की बजाय सिर्फ़ और सिर्फ़ कांग्रेस की कढ़ी बिगाड़ने में लगा है।

 

अभय सिंह चौटाला के प्रेस वार्ता लाइव को खंगाल कर देखना अभय भाजपा की बजाय कांग्रेस को कोसते नज़र आएंगे । विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव की बात हो , राष्ट्रपति चुनाव की बात हो, राज्यसभा में वोट देने की बात हो अभय हमेशा भाजपा के साथ खड़े नज़र आएं है । पर अपने हर बयान हर मंच में हुड्डा और भाजपा के मिले होने की बात करते हैं।

 

अपने हर चुनाव से पूर्व कभी बड़े बादल के जरिए तो अभी सुखबीर बादल के जरिए भाजपा नेतृत्व से स्क्रिप्ट लेकर चुनाव लडने वाले अभय चौटाला आजकल हरियाणा में भाजपा के रास्ते करने के लिए जातिवादी राजनीति या कहें की जाट नॉन जाट का राग अलाप रहें।

 

इससे अभय चौटाला अपना तो कुछ नही बना पाएंगे । पर इससे भाजपा को फायदा पहुंचा कांग्रेस के रास्ते में कीले बिछाने में जरूर सफ़ल हो सकते हैं और यहीं उनकी मंशा है। इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी टीम को जाट आरक्षण आंदोलन को दोबारा ताज़ा करने , राजकुमार सैनी को भूपेंद्र सिंह हुड्डा से जोड़कर दिखाना , जाटों को उत्तेजित करना ,कांग्रेस को जाट विरोधी बोलना, नॉन जाट को संदेश देना आदि ।

 

जबकि सैनी के घटनाक्रम का सत्य यह है की राजकुमार सैनी ने कभी कांग्रेस में शामिल होने इच्छा जताई थी , जिसकी अध्यक्ष उदयभान जी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जी की नामंजूरी के चलते ज्वाइनिंग रोक दी गई। क्योंकि इन नेताओं का कहना है की जातिगत जहर घोलने की सोच रखने वाले किसी भी नेता की कांग्रेस पार्टी को जरूरत नहीं हैै.  बात यहां खत्म हो गई थी।

 

फिर पूरे देश के 35 छोटे दलों के प्रतिनिधि जो बैकवर्ड की राजनीति करते हैं या उनके अधिकारों के लिए कार्य कर रहें हैं,उनके साथ मिलकर INDIA गठबंधन को बाहरी तौर पर बिना शर्त समर्थन देने के प्रस्ताव के साथ ये लोग दीपक बाबरिया से मिले और और उन्होंने खड़गे जी और राहुल से मिलवा दिया

 

और उन्होंने बिना शर्त समर्थन देने का प्रस्ताव रख दिया और INDIA गठबंधन के जाति जनगणना के मुद्दे को सराहते हुए कहा है की लोकसभा के चुनाव में हम इस गठबंधन के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे।

 

ऐसा समर्थन तो कोई भी कर सकता है, चाहें तो ख़ुद अभय सिंह चौटाला भी कर सकते हैं और करने का प्रयास भी किया था।

 

अभय की पूरी टीम ने ये खूब चलाया की खड़गे से मिले Abhay chotala इनेलो की रैली में पहुंचेंगे खड़गे वगैरा वगैरा ,पर अभय चौटाला की शर्त थी उन्हें टिकट चाहिए था जो बात नही बनी तो अभय चौटाला चल दिए गौरी बाबू की भूमिका निभाने की हमें तो आपने साथ लिया नहीं।

 

अब आपका खेल हम भी बिगाड़ेंगे,लेकिन वो कहते है ना जैसी सोच वैसी सोभा , इस रास्ते पर चलने वाले कभी अपने पांव नहीं बचा पाते। अभय चौटाला के साथ भी यही होगा। जाट अब स्याने हो चुके हैं अपना पराया ,अपना फायदा और नुकसान उनको अब समझ में आ गया हैं।

 

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ये पुराने समय की राजनीति नहीं रही की जब देवीलाल जी कहते थे की लोगों को समझाना मुश्किल है, बहकाना आसान। अब किसान कौम और 36 बिरादरी ये समझ चुकी है कि मुद्दों पर वोट करनी है , वोट कटुआ लोगों से बचना है।

 

जिसका सीधा फर्क आप देख सकते हैं कि कैसे चौटाला परिवार की राजनीति हासिए पर चली गई है । पर चौटाला परिवार अभी भी अपनी रणनीति नहीं बदल रहा है क्योंकि दूसरों को नुकसान पहुंचाने की सोच रखने वाले चौटाला अपना फायदा कैसे करना है ये भी भूल गए हैं । इसे अहंकार पुष्टि कहें या सियासी मूर्खता पर जो भी है अभय का सूर्य अस्त करने को काफ़ी है।

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