हरियाणा के नवनिर्वाचित स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद पर बने रहने के दौरान पार्टी की सदस्यता छोड़ने के लिए स्वतंत्र, इस नेता ने छोड़ी थी सदस्यता
चंडीगढ़ -- शुक्रवार 25 अक्टूबर नव-गठित 15वीं हरियाणा विधानसभा के बुलाए गए प्रथम सत्र में प्रदेश के सभी 90 विधानसभा हलको से नव-निर्वाचित विधायकों को प्रो-टेम (कार्यवाहक) स्पीकर डॉ. रघुवीर काद्यान द्वारा सदन के सदस्य अर्थात विधायक पद की शपथ दिलाई गई जिसके बाद सदन द्वारा सर्वसम्मति से करनाल जिले के घरौंडा वि.स. हलके से इस बार लगातार तीसरी बार भाजपा पार्टी से विधायक बने हरविंद्र कल्याण को विधानसभाध्यक्ष अर्थात स्पीकर एवं जींद वि.स. सीट से हाल ही में निरंतर तीसरी बार भाजपा से टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए डॉ. कृष्ण मिड्डा को विधानसभा उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) चुन लिया गया. इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और
संवैधानिक मामलों के जानकार हेमंत कुमार का कहना है कि 15 वीं हरियाणा विधानसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों पदों पर उक्त पदो पर निर्विरोध निर्वाचित होने के बाद हरविन्द्र कल्याण और कृष्ण मिड्डा दोनों अपने अपने संवैधानिक पदों ( स्पीकर और डिप्टी स्पीकर) पर बने रहने दौरान अपनी मूल राजनीतिक पार्टी अर्थात भाजपा की सदस्यता स्वैच्छिक तौर पर छोड़ने के लिए संवैधानिक तौर पर स्वतंत्र हैं और ऐसा करने से उन्हें बदल विरोधी कानून के अंतर्गत विधानसभा सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है.
हेमंत ने भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची ( जिसे आम भाषा में दल बदल विरोधी कानून कहा जाता है) के 5 वें पैरा का हवाला देते हुए बताया कि उसके अनुसार जो विधानसभा का सदस्य ( विधायक) सदन के अध्यक्ष( स्पीकर) या उपाध्यक्ष ( डिप्टी स्पीकर) के पद पर निर्वाचित होने उपरांत उस राजनीतिक दल की सदस्यता स्वैच्छिक तौर पर छोड़ देता है जिसके टिकट पर वह विधायक निर्वाचित हुआ था और जब तक वह उस पद अर्थात स्पीकर अथवा डिप्टी स्पीकर रहता है न तो अपनी मूल राजनीतिक पार्टी और न किसी और राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण करता है, उस पर दल बदल विरोधी कानून के प्रावधान लागू नहीं होंगे. पैरा 5 के भाग बी में यह भी उल्लेख है कि स्पीकर या डिप्टी स्पीकर के पद से स्वयं हटने या हटाए जाने के बाद वह विधायक पुनः अपनी मूल राजनीतिक पार्टी में सम्मिलित होने के लिए भी स्वतंत्र है और ऐसा करने पर भी उस पर दल बदल विरोधी कानून के प्रावधान लागू नहीं होंगे.
हेमंत ने बताया कि 25 वर्ष पूर्व जुलाई, 1999 में जब हरियाणा में तत्कालीन बंसी लाल सरकार का तख्ता-पलट हुआ था जिसके बाद ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इनेलो की सरकार बनी थी जो बंसी लाल की तत्कालीन हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) के करीब डेढ़ दर्जन बागी विधायकों और भाजपा एवं निर्दलियों के सहयोग से बन पाई थी, उसमें इनेलो के थानेसर (कुरुक्षेत्र) से तत्कालीन विधायक अशोक अरोड़ा (जो अबकी बार थानेसर से कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हुए हैं) विधानसभा स्पीकर बने थे एवं उन्होंने उस पद पर रहने दौरान अपनी तत्कालीन पार्टी इनेलो की सदस्यता छोड़कर हरियाणा के राजनीतिक इतिहास में एक ऐतिहासिक एवं प्रशंसनीय उदाहरण पेश किया था जिसे न तो उससे पहले किसी ने किया था और न ही उसके बाद गत 25 वर्षो में हरियाणा में कोई विधानसभा स्पीकर अथवा डिप्टी स्पीकर करने की हिम्मत जुटा पाया है.