Haryana Vidhansabha: हरियाणा विधानसभा 52 दिन पहले भंग.. 5 सवालों में इसकी वजह और असर जानिए
Haryana Vidhansabha: हरियाणा विधानसभा 52 दिन पहले भंग : देश में संवैधानिक संकट का ऐसा पहला मामला; 5 सवालों में इसकी वजह और असर जानिए
Haryana Vidhansabha: हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने प्रदेश विधानसभा भंग कर दी है। राज्य की भाजपा सरकार की सिफारिश पर गवर्नर ने इसका नोटिफिकेशन जारी कर दिया।
विधानसभा भंग करने के नोटिफिकेशन में गवर्नर ने लिखा- ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 174 के खंड (2) के उप-खंड (बी) द्वारा मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए मैं बंडारू दत्तात्रेय, राज्यपाल, हरियाणा तत्काल प्रभाव से हरियाणा विधानसभा भंग करता हूं।’
CM नायब सिंह सैनी की अगुआई वाली कैबिनेट ने बुधवार को ही विधानसभा भंग करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। गवर्नर के मुताबिक, अगली सरकार का गठन होने तक नायब सैनी कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
दरअसल, 6 महीने की अवधि में विधानसभा सेशन न बुला पाने के संवैधानिक संकट से बचने के लिए सैनी सरकार ने यह कदम उठाया।
हरियाणा की 14वीं विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर तक था। यानी अभी कार्यकाल पूरा होने में 52 दिन बचे थे। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, विधानसभा के 2 सेशन में छह महीने से ज्यादा का गैप नहीं हो सकता।
प्रदेश विधानसभा के पिछले सेशन को 12 सितंबर को 6 महीने पूरे हो गए। चूंकि राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं इसलिए सेशन बुलाना संभव नहीं था।
देश में इस तरह के संवैधानिक संकट के बाद विधानसभा भंग करने का यह पहला मामला है। 1947 में देश आजाद होने के बाद कभी किसी राज्य में ऐसी नौबत नहीं आई। यहां तक कि कोरोनाकाल में भी हरियाणा में ऐसे ही संकट को टालने के लिए एक दिन का सेशन बुलाया गया था।
इससे पहले भी हरियाणा विधानसभा 3 बार समय से पहले भंग की गई लेकिन उन तीनों ही मामलों में समय से पहले चुनाव करवाने के लिए ऐसा किया गया था।
Haryana Vidhansabha: विधानसभा भंग क्यों करनी पड़ी?
संवैधानिक मामलों के जानकार और पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 174(1) के तहत किसी भी राज्य की विधानसभा के 2 सेशन के बीच 6 महीने से ज्यादा का गैप नहीं हो सकता।
हरियाणा में 13 मार्च 2024 को विधानसभा का एक दिन का विशेष सेशन बुलाया गया था। उसमें CM नायब सैनी ने बहुमत साबित किया। इसके बाद 6 महीने के भीतर यानी 12 सितंबर तक हर हाल में दूसरा सेशन बुलाया जाना अनिवार्य था। सैनी सरकार ऐसा नहीं कर पाई।