Haryana Election News: हरियाणा में बिश्नोई समाज तय करता है चुनाव में हार-जीत, यूं ही नहीं आयोग को बदलनी पड़ी तारीख!
रमेश भार्गव(स्वतंत्र पत्रकार )
Haryana Election News: चुनाव आयोग ने बिश्नोई समुदाय के सदियों पुराने त्योहार को ध्यान में रखते हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीख बदल दी है।
Haryana Election News: हरियाणा में अब 1 अक्टूबर की जगह 5 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे।
आयोग ने कहा कि जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनावों की मतगणना अब 4 अक्टूबर के जगह 8 अक्टूबर को होगी। बीजेपी ने भी वोटिंग की तारीफ बदलने के लिए चुनाव आयोग को लेटर लिखा था। उन्हें भी भी वोटिंग पर्सेंटेज कम होने का डर यूं ही नहीं था।
दरअसल हरियाणा में बिश्नोई समाज चुनाव में अहम रोल रखता है। अगर बिश्नोई समाज का बैकग्राउंड देखें तो इस लिहाज से बिश्नोई ही हरियाणा की सिसायत का बड़ा मोहरा हैं।
प्रताप केसरी, हरियाणा में 90 विधानसभा आती हैं। इनमे से भिवानी, हिसार, सिरसा और फतेहाबाद जिले ऐसे हैं, जहां बिश्नोई बाहुल्य गांव हैं। इसके अलावा बिश्नोई समाज का असर करीब 11 विधानसभा क्षेत्रों में है। जिनमें करीब दो लाख वोट है। हरियाणा की आदमपुर, उकलाना, नलवा, हिसार, बरवाला, फतेहाबाद, टोहाना, सिरसा, डबवाली, ऐलनाबाद, लोहारू विधानसभा क्षेत्र बिश्नोई का गढ़ मानी जाती है।
बिश्नोई समाज का इतिहास! (Haryana Election News)
बिश्नोई समाज के गुरु हैं जंभेश्वर है। इसकी याद में ही आसोज अमावस्या उत्सव मनाया गया जाता है। उत्सव का आयोजन राजस्थान के मुकाम में होता है। अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा की मानें तो राजस्थान में 1542 में भीषण अकाल पड़ा था। भगवान जम्भेश्वर के चाचा पूल्होजी पंवार समराथल पर आए थे।
जाम्भोजी ने पूल्होजी को 29 धर्म नियमों की आचार संहिता के बारे में बताया। जाम्भोजी ने पूल्होजी पंवार को अपनी दिव्य दृष्टि दी और उन्हें स्वर्ग-नरक दिखाया। प्रताप केसरी, इस घटना के बाद वह जाम्भोजी के अनुयायी बन गए। अकाल के कारण लोगों का पलायन शुरू हुआ। जाम्भोजी ने लोगों की मदद का ऐलान किया।
हजारों लोगों के काफिले समराथल पहुंचे। बिश्नोई समाज का गठन उत्तर प्रदेश के नगीना में वर्ष 1919 में हुआ था। इसका पहला अधिवेशन नगीना में 1921 में 26 से 28 मार्च तक हुआ।
कैसे बना बिश्नोई समुदाय?
श्री गुरू जंभेश्वर ने अनेक सामाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों को त्यागने का आह्वान किया। उन्होंने बहुदेववाद, मूर्तिपूजा, भूत-भोमिया, क्षेत्रपाल की पूजा, नर बलि, पशु बलि, पिंड दान, तीर्थ यात्रा आदि को अस्वीकार करते हुए केवल एक परमात्मा (विष्णु) का जप करने पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि बिश्नोई पंथ पोथी-शास्त्रों का धर्म नहीं है, अपितु कर्मवाद, विचारवाद और सदाचरण का धर्म है। जंभेश्वर के माता-पिता जब तक जीवित रहे, वह उनकी सेवा करते रहे। उनके निधन के बाद उन्होंने अपनी सारी संपत्ति त्याग दी और राजस्थान के बीकनेर जिले में स्थित समराथल धोरे पर चले गए।
गुरू जंभेश्वर ने संवंत 1542 सन् 1485 में कार्तिक वदी अष्टमी को समराथल धोरा, बीकानेर पर विराट यज्ञ हवन का आयोजन किया। इसी दिन पाहल बनाकर और कलश स्थापना कर एक धर्म की स्थापना की जिसे बिश्नोई धर्म नाम दिया गया। इस धर्म में सबसे पहले जंभेश्वर के चाचा पुल्होजी शामिल हुए।
बिश्नोई जाति का इतिहास! (Haryana Election News)
बीकानेर में हुए विराट हवन में सभी जातियों और वर्गों के लोग शामिल हुए। सैकड़ों लोग जुटे। हालांकि इनमें से अधिकांश जाट और राजपूत जाति के लोग थे। उन्होंने बिश्नोई जाति अपनाई। उसके बाद से लोग ग्रुप में आते और बिश्नोई धर्म अपनाते। गुरू जंभेश्वर ने 51 वर्षों तक भारत भ्रमण किया और बिश्नोई धर्म का प्रचार किया।
कैसे नाम पड़ा बिश्नोई?
बिश्नोई शब्द की उत्पति बिस और नोई से हुई। स्थानीय भाषा में बिस का मतलब है 20 और नोई का अर्थ है 9। दोनों को मिलाकर 29 होता है और गुरू जंभेश्वर ने अपने अनुयायियों को 29 नियमों की आचार संहिता बनाई है। बिश्नोई समाज मानता है कि गुरू जंभेश्वर भगवान विष्णु के अवतार थे।
बिश्नोई जाति की जनसंख्या
बिश्नोई जाति की जनसंख्या सबसे जायादा राजस्थान में पाई जाती है। दूसरे नंबर पर हरियाणा है। बीकानेर रियासत बिश्नोई जाति का उद्गम स्थल है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, सिंध, मुलतान, अफगानिस्तान के काबुल और कंधार में भी बिश्नोई फैले हैं। भारत में बिश्नोई समुदाय की आबादी 13 लाख से ज्यादा मानी जाती है।
राजस्थान बिश्नोई जाति का गढ़ है, यहां बिश्नोई समुदाय की आबादी लगभग 9 लाख है। राजस्थान के नागौर, जोधपुर, सांचौर, जालोर, बाड़मेर, चूरू, हनुमानगढ़ और बीकानेर जिले में सबसे ज्यादा बिश्नोई हैं। दूसरे नंबर पर हरियाणा राज्य आता है। यहां बिश्नोई समुदाय की आबादी लगभग 2 लाख है।
क्यों हरियाणा की राजनीति में बिश्नोई समुदाय का दबदबा? (Haryana Election News)
बिश्नोई पंथ में यूं तो सभी जातियां शामिल हैं। लेकिन लगभग 80 प्रतिशत जाट जाति से बिश्नोई बने हैं। 20 फीसदी ब्राह्मण, राजपूत, अहौर, कुरमी, वैश्य, सुनार, गायणा, सुधार, नाई, त्यागी, कसबी, बेहड़, मेघवाल हैं। अब जब सबसे ज्यादा जाटों ने बिश्नोई पंथ अपनाया तो जाहिर सी बात है कि मूलता वे जाट जाति से ही आते हैं।
भले ही परिवार बिश्नोई पंथ से जुड़ा हो लेकिन उनके परिवार के दूसरे लोग, रिश्तेदार और मिलने वाले जाट ही हैं।
ऐसे में उनका असर जाटों और बिश्नोई दोनों में रहता है। हरियाणा में जाट ही सत्ता में हार जीत-हार तय करता है। हरियाणा में कुल वोटर्स के लगभग 30 फीसदी जाट हैं।
रोहतक, सोनीपत, कैथल, पानीपत, जींद, सिरसा, झज्जर, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी समेत हरियाणा की 90 में से 35 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां जाटों का बड़ा प्रभाव है।
यही कारण है कि हरियाणा को जाटलैंड भी कहा जाता है। इसलिए जाट और बिश्नोई हरियाणा की राजनीति में अहम मायने रखते हैं।.